A single trip to my home town

  The kannauj dipo

 दिवाली भी आ चुकी थी। हर तरफ खुशी का माहौल था। मै भी गांव जाने की खुशी में काफी उत्साहित था l क्योंकि इस बार फिर दिवाली की छुट्टियाँ गाँव में बिताउंगा। नींद भी नही आ रही थी,क्योंकि सुबह निकलना भी था
दीदी-: सोना, लैपटॉप बंद करके सो जाना, सुबह जल्दी उठना है, हाँ दीदी, थोड़ी देर रुको, मैं बंद कर रहा हूँ
सुबह हो गई थी, दीदी:- सोना चार बज गए है उठ जाओ जल्दी, नही तो लेट हो जाओगे
तब तक दीदी जी ने खाना तैयार कर दिया था। सोना नहा लिया है  l तुम्हारा खाना टेबल पर रखा है खा लेना l हाँ , दीदी ने रास्ते के लिए कुछ पूड़िया और गोभी का आचार रख दिया
घर से  बाहर निकला देखा की चारों और कोहरा ही कोहरा था सामने का कुछ दिखाई नही दे रहा था मै नीचे उतरकर आया मैने वहा से टेम्पो लेकर बस स्टैंड पहुँचा जहां मैंने देखा बसों में ज्यादा भीड़ थी सवारिया इधर से उधर भाग रही थी जैसे तैसे मैं बस में चड़ा और पीछे विंडो साइड की खिड़की पर बैठ गया ,मैंने अपना आउटर देखा जो कोहरे के फुहारे से  पूरा सफ़ेद  हो चूका था l जिसे मैंने रूमाल की सहायता से साफ़ किया
हमारी बस वहां से रवाना हुई.और खुर्जा अलीगढ के रास्ते होते हुए लगभग 200 किलोमीटर चल चुकी थी l जिसमे लगभग  50-60 यात्री सफर कर रहे थे  जो अपनी - अपनी सीटों पर बैठ ,आपस में वार्तालाप कर रहे थे ,जिसमे कुछ बुजुर्ग दादा जी भी थे जो पास में बैठे यात्रियों को दिवाली और भगवन राम की विजय के बारे में उनको अच्छी-अच्छी बाते बता रहे थे  l मेरी नजर सामने शीशे पर पड़ी देखा कि प्रभु अंशुमाली अपने आने की ख़ुशी में आकाश में लालिमा बिखेर रहे हो
उनकी सरारती किरणों का माध्यम में ऐसे बिचलित होना , लग रहा था मानो प्रभु अंशुमाली आकाश की गोद में और बादलों की छाव में चाँदनी के साथ छुपन छुपाई
खेल रहे हो . मैंने अपनी पूरी खिड़की खोली ,दूर -दूर तक ये धरा पीले - हरे खेतों से सजी हुई थी
मानो इसने कोई सुनहरे गहने पहन रखे हो वो सरारती हवाओ के छोटे -छोटे झोके जो कभी इस सरसो की टहनी कभी उस टहनी को जा झिकोरा कभी गेहुओ के
 खेतों में जा मोती से बिखेरे .सरसो की टहनियों को इस तरह झूमता देख लग रहा था मानो वो माँ सरस्वती की वीणा की धुन सुनकर एक -दूसरे के  गले मिलकर मग्न हो रही हो . जिनपर सुनहरी किरणे अपने नन्हे- नन्हे पांवों
 से उनपर नृत्य करते हुए उन्हें सुनहरा बना रही हो
 की हमारी बस ने मोड़ लिया और वो नादान सरारती किरणे मेरी खिड़की पर आ चमकी, मै भी कुछ सरारती सा बन गया,और खिड़की से बाहर सिर निकाल कर इस
 सुहावनी सुबह का आनंद लेने लगा , जहाँ मुझे एक गाव दिखाई दिया जिसमे कुछ मकान पक्की ईंटो  और कुछ कच्ची मिटटी की दीवारों से बने थे l जो गाय के गोवर और गेरू से लिपी हुई थी उनपर रखे पटेल के छप्पर जो एक तरफ दीवाल और दूसरी तरफ लकड़ी के खम्बो पर टिके थे
दीवारों से होते हुए उनके छप्परो पर पौड़ी लौकी और सेम की बेले और उनमें लगी लौकिया जो कुछ तो छप्पर पर और कुछ दीवारों के सहारे लटक रही थी
कुछ महिलाए अपने घरों के चबूतरों को गेरू और गाय के गोबर से लीपने के लिए चूने कुछ तो सफ़ेद मिटटी से उनके आस पास शैडिंग कर रही थी , चारो ओर त्योहारिक साफ़ सफाई चल रही थी l काफी ख़ुशी का माहौल लग रहा था ,कुछ बच्चे सुबह ही पटाखे छुड़ाने लगे थे
वही पास गांव के बाहर कुछ दूरी पर एक माता जी गाय गोबर के उपले बना रही थी
पास में ही गोल-गोल बने उन उपलों के ढेर बड़े अच्छे लग रहे थे  जिनकी मैंने फोटो खींची थी जिन्हे मैंने अपने घर आकर अपनी माँ को दिखाया था " आप भी ऐसा ही बनाया करो l अब समय ज्यादा हो गया था रोड पर धूल उड़ने लगी थी जिससे वंचित रहने के लिए मैंने खिड़की बंद कर ली थी और खिड़की के सहारे से लंवबत होकर बैठ गया था कि हमारी बस हमारे गंतव्य स्थान से 40 किलो मीटर पहले वेवर में बिगड़ गयी जिससे हम यात्रियों को दूसरी बस में बिठाया गया l मै अपने स्टैंड पर 5:05pm पर पहुँच गया वहाँ से मैं अपने टेम्पो स्टैंड "हांथी वाली बिल्डिंग के पास पहुँच गया ,समय काफी ज्यादा हो गया था , जिससे यहाँ से सवारिया मिलना बहुत मुश्किल लग रहा था पर थैंक्स गॉड मुझे मेरे ही गाँव के तांगा वाले अंकल मिल गए थे .मै उनके तांगे पर बैठ गया तांगा वहा से चलता है  टक _टक _टक _टक..........  कुछ समय बाद मैं अपने घर पहुँच गया
जहां काफी भीड़ -भाड़ थी कुछ रिश्तेदार मामा ,मामी ,मौसी  और उनके बच्चे आये हुए थे क्योंकि अगले ही दिन मेरी दीदी की सगाई होने वाली थी , मैं जैसे ही अंदर जा रहा था कि माँ ने अपने लाल को लाल-पीला करना शुरू कर दिया "इतना लेट क्यों हुए ,क्यों लेट निकलते हो ,बगेरा-बगेरा
पर माँ पहले पैर तो छू लेने दो,  मुझे पता है कि तुम कितनी गुस्से में हो , तुम्हारा जो प्यार है हमारे प्रति वही बाहर निकल रहा है , माँ जी "होता है " हर माँ को अपने बिलायत से आ रहे लाल की चिंता होती है ,कंही कोई चुरा न कोई ये लाल ,
आपको पता है की आपका लाल खुद इतना बड़ा चोर है  अच्छा माँ अगर लेक्चर ख़त्म हो गए तो मै जाऊ कपड़े चेंज करने है थोड़ी देर बाद दीदी -: सोनू भैसो को चारा करना है और पानी पिलाना है अच्छा आते ही काम पर लगा दिया , तो दूध भी मैं ही निकलूंगा कोई आ न जइयो
की शाम का दूध निकालने का समय हो गया था  और माँ दूध निकालने के लिए बाल्टी लेके आती है मै बाल्टी लेके दूध निकालने लगा थोड़ी देर में ही मेरे हाँथ भर आये थे क्योंकि मैंने काफी समय बाद दूध निकला था
 माँ दूध पकने एक मिट्टी के वर्तन मटकी में रख देती है मैं और हमारे मौसेरे फुफेरे भाई बहन और एक मौसेरी चाची काफी रात तक बातें करते रहे ,और तो और उस दिन बिस्तर जमीन पर लगाया था
रसगुल्ले की बाल्टी  और पानी बिस्तर के पास रख लिया था 1-2 बजे तक मैंने किसी को सोने तक नहीं दिया था उस दिन काफी खुश था मैं यानी Gd sonu singh azad

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